“नंद घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की”, यह पंक्ति मात्र ही काफी है किसी भी भारतीय के चेहरे पर मुस्कान और मन में हर्ष भर देने के लिए। समस्त भारतवासियों के सबसे प्यारे और भारतीय संस्कृति के अनमोल धरोहर श्री कृष्ण के जन्मदिवस को बड़े ही प्रेम और उल्लास से मनाया जाता है जिसे हम जन्माष्टमी कहते हैं। हर साल जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास और एकजुट होकर पूरे भारत में मनाया जाता है।
आज इस कथन के माध्यम से हम कृष्ण जन्माष्टमी और उससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानेंगे।
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जन्माष्टमी 2024 कब है, तिथि-
जन्माष्टमी 2024 की तिथि और उससे जुड़े नक्षत्र एवं अष्टमी तिथि की समस्त जानकारी इस प्रकार हैं: जन्माष्टमी का त्योहार 26 अगस्त को मनाया जाएगा। आपको यह भी बता दें कि अष्टमी तिथि की शुरुआत 26 अगस्त, सुबह 03 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होगी और 27 अगस्त को सुबह 02 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी।
श्रीकृष्ण पूजा शुभ मुहूर्त-
श्री कृष्ण पूजा अभिजीत मुहूर्त 26 अगस्त को रात 12 बजे से लेकर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।
महत्व-
जन्माष्टमी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। मथुरा नगरी अपने राजा कंस के अत्याचारों से अत्यंत पीड़ित थी, इसलिए स्वयं श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए थे जिनके आगमन के पश्चात दुनिया से अधर्म का समूल नाश संभव हो पाया। इसलिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म पर एक उम्मीद का सूर्योदय होता दिखा कि संभवतः अब मथुरा निवासियों की पीड़ाओं का नाश संभव है और श्री कृष्ण का जन्म दिवस जन्माष्टमी के नाम से विख्यात हुआ।
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जन्माष्टमी की कथा-
भादव कृष्ण पक्ष अष्टमी को स्वयं नारायण के आठवें अवतार धरती पर अवतरित हुए और वही श्री कृष्ण के नाम से संपूर्ण विश्व में विख्यात हुए। तो आइए बात करते हैं जन्माष्टमी के कथा की। जैसा कि आप सभी जानते हैं मथुरा नगरी ब्रज में स्थित है और इसी मथुरा नगरी में कंस नामक एक राक्षस राज करता था जिसके अत्याचारों से समस्त मथुरा नगरी परेशान थी। निर्दयी कंस ने अपनी बहन देवकी की 7 संतानों की निर्मम हत्या कर दी थी और अब आठवीं संतान (जिससे की उसे मृत्यु का भय था) को मारने के लिए बड़ा ही उत्सुक बैठा था। पर नियति की योजना तो कुछ भिन्न ही थी।
कथाओं के अनुसार जब देवकी की आठवीं संतान का जन्म हुआ तो कारागार में बैठे सारे सिपाहियों को निद्रा आ गई और वासुदेव की बेड़ियां खुद ब खुद ही खुल गई मानो ईश्वर यह संकेत दे रहे हो कि इस बालक को सुरक्षित हाथों में सौंप कर वसुदेव विश्व पर उपकार करें। वसुदेव को अपने प्रिय पुत्र की सुरक्षा हेतु नंदराय से उपयुक्त व्यक्ति दूसरा न सूझा और उन्होंने बिना किसी की चिंता किए अपने नवजात बालक को लेकर नंद गांव की ओर बढ़ना शुरू कर दिया। रास्ते में आ रही भीषण आंधी और बारिश मानो वसुदेव को किंचित भी भयभीत ना कर सकी और नारायण का कवच तो स्वयं शेषनाग थे ही। अब अपने बालक को अपने परम मित्र के हाथ में सौंपते हुए वसुदेव ने उनकी पुत्री को अपने साथ कारागार वापस ले जाने का निश्चय किया ताकि कंस को यह संकेत ना हो पाए की नवजात बालक को कहीं सुरक्षित पहुंचा दिया गया है। कंस ने अपनी व्याकुलता समाप्त करने के लिए उस कन्या को देवकी की आठवीं संतान समझ मारना चाहा परंतु वह समझ ही नहीं पाया कि वह कन्या कोई और नहीं बल्कि स्वयं योग माया थी जिन्होंने अपनी लीला समेटने से पहले कंस को यह संकेत दे दिया कि उसका काल किसी सुरक्षित हाथों में पहुंच गया है और अब कंस तथा उसकी महत्वाकांक्षाओं का अंत समीप है।
जन्माष्टमी कविता
तो आइये एक कविता की ओर नजर डालते हैं जिसे विशेषकर हमारे लिए लिखा है एकांक्ष द्विवेदी ने।
मध्य रात्रि तेज आंधियाँ चली,
हुई भीषण वर्षा की बौछार
द्वारपाल सभी योगनिद्रा में,
बंदीगृह में जन्मे पालनहार!
अष्टमी तिथि ,रोहिणी नक्षत्र,
भाद्रपद माह में लिया अवतार
श्याम वर्ण कंचन सा चमके,
अधरों में छलके तेज अपार!
सहसा दिव्य आकाशवाणी हुई,
ले जा बालक यमुनापार
बेड़ियां टूटी, द्वार खुले,
पिता – पुत्र चले नंद के द्वार!
त्रिलोक लीलाधर पे मुग्ध हुआ,
यमुना का जलस्तर क्रुद्ध हुआ
पर जैसे ही हरि चरणों को छुआ,
भाग्य उसका समृद्ध हुआ!
यमुनापार नंद गोकुल पहुंचे,
नयन, पुत्र – विरह पे बरसे
हाय रे नियति तेरी कैसी इच्छा,
कहीं पे हर्ष, कही सुख की प्रतीक्षा!
यशोदानंदन पालकी में खेले,
बधाईयों की लगी कतार
सुर, नर, मुनि खुशी से झूमे,
शीश झुकाए बारंबार!
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा सामग्री-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा के लिए आपको जो सामग्री लगेगी वह कुछ इस प्रकार है:
- दो दीपक, बाती, शुद्ध घी, धूप, अगरबत्ती और माचिस।
- एक पूजा की थाली, शंख और एक घंटी जो आरती के वक्त आपको काम आएगी।
- कपूर, रोली, चंदन और मौसम के फल।
- एक खीरा, तुलसी और नारियल।
- सजा हुआ कलश, वस्त्र, आम के पत्ते, सुपारी, पान पत्ते।
- सूखा मेवा, प्रसाद, मिश्री और पंचामृत।
- श्रीकृष्ण के बाल रूप की एक मूर्ति, उनके अभिषेक के लिए एक थाली और एक सजा हुआ पालना।
- अक्षत, शहद और दूध(कच्चा दूध)।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा करने की विधि-
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा आपको कुछ इस प्रकार करनी है:
- मंदिर में दोनों हाथ जोड़कर मन में आपके कुलदेवता जिनकी आप रोज आराधना करते हैं, और साथ ही साथ श्री कृष्ण जी का ध्यान करें।
- इसके बाद तीन बार आचमन करें। आचमन करने के लिए घर के मंदिर में रखे हुए जल के बर्तन से, एक चम्मच जल आप अपनी दाईं हथेली पर डालें और इस जल को “ओम कृष्णाय नमः” का जाप करते हुए पी लें। ऐसा तीन बार करें।
- तत्पश्चात जल लेने वाली हथेली को जल से धोकर तथा हाथ में चावल, जल लेकर श्रीकृष्ण का ध्यान करें। इसके साथ मन ही मन संकल्प करें (संकल्प लेते समय आप अपना नाम एवं गोत्र का नाम लेकर सच्चे मन से संकल्प लें)।
- अब चावल का ढेर बनाकर सजे सजाए कलश को इस पर रख दें। इस कलश में फिर जल भर दें। परंपरा के अनुसार कलश पर रोली, चंदन और चावल से टीका कर दें और कलश पर एक मोली भी बांध दें।
- कलश में सुपारी और एक सिक्का डालकर, उसी कलश में आम के पत्ते डाल दें। फिर उसमें एक नारियल रख दें।
- अब एक कोरा कपड़ा (लाल या पीला) कलश के पास चढ़ाकर उस पर रोली और अक्षत चढ़ा दें और मन ही मन गंगा, जमुना और सरस्वती का स्मरण कर कलश से प्रार्थना करें।
- अब मंदिर में रखे पानी के बर्तन को उठाकर उसमें एक फूल डालकर उस फूल से सारी पूजन सामग्रियों एवं सभी भक्तों पर जल का छिड़काव कर दें।
- फिर तुलसी और अक्षत डाले सभी पकवान, बर्तन, भोग और अन्य पागों पर।
- अब अपने दाएं हाथ में जल, फल और अक्षत लेकर 15 बार ओम कृष्णाय नमः का उच्चारण करें तथा हाथ में लिए जल, फल और अक्षत को लेकर कृष्ण जी की मूर्ति पर अर्पण कर दें।
- अब आपको कृष्ण मूर्ति पर पंचामृत स्नान कराना है। इसके लिए कृष्ण जी के बाल रूप की मूर्ति को एक थाल में सजा लें। फिर मूर्ति को पहले दूध से, फिर क्रमशः दही, शुद्ध घी, शहद और शक्कर से पंचामृत स्नान विधि पूरी करें। तत्पश्चात मूर्ति पानी से साफ कर लें और थोड़ा सा चरणामृत पहले से तैयार पंचामृत में मिला लें।
- अब श्री कृष्ण जी की मूर्ति को लेकर उनका नाम लेकर उन पर चंदन अर्पित करें। श्री कृष्ण जी को वस्त्र अर्पित करें। अब जनेऊ, गंध, और फूल अर्पित कर श्रीकृष्ण का श्रृंगार करें।
- धूप और बत्ती जलाएं और मन ही मन ओम कृष्णाय नमः का जाप करें और श्रीकृष्ण को भोग लगाएं। तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण को भोग ग्रहण करने का अनुरोध करें।
- अब फल, जल, पान तथा दक्षिणा के रूप में अपनी इच्छा अनुसार धनराशि चढ़ाएं और श्री कृष्ण को झूला झुलाएं।
- इसके बाद आरती की थाली तैयार कर, घंटी और शंख बजाकर सामूहिक रूप से श्रीकृष्ण की आरती करें।
- पूजा के बचे हुए जल को सुबह तुलसी में चढ़ा दें। फिर श्रीकृष्ण के भोग के लिए निकाले हुए प्रसाद को ग्रहण कर आप अपना व्रत समाप्त करें।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत कैसे रखें?
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रात्रि 12:00 बजे तक रखें। व्रत की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और व्रत के दिन प्रातः काल स्नान करें। इसके पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल और गंध लेकर संकल्प करें। तत्पश्चात श्री कृष्ण जी का नाम लेकर उनकी मूर्ति स्थापित करें। और फिर रात्रि को विधि-विधान से पूजन कर, श्रीकृष्ण के जन्म के बाद भोग का प्रसाद सेवन कर अपना व्रत खोलें।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भारत में चारों ओर का वातावरण मानो भगवान श्रीकृष्ण के रंग में डूब जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार विभिन्न रूपों में मनाया जाता है:
- कुछ जगहों पर रंगो की होली होती है और कहीं फूलों का इस्तेमाल कर उत्सव मनाया जाता है।
- श्री कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव दही हांडी फोड़ कर भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर भगवान श्री कृष्ण के जीवन की कुछ मोहक झांकियां भी निकाली जाती है और मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है।
- भक्त अपने घरों पर भी जन्माष्टमी बड़े धूमधाम एवं विधि पूर्वक मनाते हैं। भक्त व्रत रखते हैं और विभिन्न प्रकार के पकवान एवं भोग लगाकर श्री कृष्ण को अर्पण कर जन्माष्टमी मनाते हैं।
- भगवान श्री कृष्ण को इस दिन झूला झुलाया जाता है और श्री कृष्ण रासलीला का आयोजन भी किया जाता है।
- भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में जन्माष्टमी का उत्सव श्रीकृष्ण का भव्य श्रृंगार कर होता है। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष में एक जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें केवल भारत से ही नहीं बल्कि विदेश से भी लाखों की संख्या में कृष्ण भक्त भगवान श्री कृष्ण का दर्शन करने आते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का भोग-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष पर आप इन चीजों को भोग में बना सकते हैं:
- भोग के लिए पंचामृत जरूर बनाएं। पंचामृत दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से बनता है जिसमें हल्का सा गंगाजल और तुलसी भी डाला जाता है।
- मेवा, माखन और मिश्री का भोग भी आप भगवान श्री कृष्ण को अर्पण कर सकते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण को माखन और मिश्री बहुत पसंद है।
- आप धनिए की पंजीरी का भी भोग लगा सकते हैं। पूर्ण रूप से सात्विक भोजन बनाए जिसमें प्याज एवं लहसुन का इस्तेमाल ना हो और समस्त भोग बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण करें। तत्पश्चात खुद ग्रहण करें।
भारत के अलग अलग क्षेत्र में कैसे मनाते हैं?
भारत के अलग-अलग राज्यों में जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही धूमधाम से और अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है:
- मथुरा की बात करें तो जन्माष्टमी का उत्सव यहां पर विशेष रूप से देखने को मिलता है क्योंकि यह श्री कृष्ण की जन्मभूमि है। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष पर एक भव्य जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें विदेशों से भी लाखों की संख्या में कृष्ण भक्त उपस्थित हो कर श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं।
- वृंदावन में इस दिन रासलीला का आयोजन किया जाता है और राधा कृष्ण को विभिन्न प्रकार के पकवान एवं भोग का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
- महाराष्ट्र में दही हांडी खेलकर जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है।
- हमारे राज्यों के विभिन्न इस्कॉन मंदिरों में फूलों एवं अन्य वस्तुओं से मंदिरों को सजाया जाता है और इन इस्कॉन मंदिरों में से दिल्ली का इस्कॉन मंदिर जन्माष्टमी के उत्सव के लिए प्रसिद्ध है।
- उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यहां विशेष प्रकार का भोग चढ़ाया जाता है और जन्माष्टमी की तैयारी 2 सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है।
- भारत के अन्य राज्यों में मंदिरों को फूल से सजा कर श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी झांकियां निकाली जाती हैं। भजन-कीर्तन एवं नाट्य रूपांतरण भी प्रस्तुत किए जाते हैं।
विदेशों में महत्व-
जन्माष्टमी का उत्सव सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है। सनातन धर्म को मानने वाले कृष्ण भक्त जो विदेश में रहते हैं वह बड़े ही धूमधाम से श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं। विदेशी देश जैसे न्यूजीलैंड, नेपाल, सिंगापुर, पैरिस, कनाडा के टोरंटो, मलेशिया, एवं अन्य विदेशी देशों में जन्माष्टमी का महाउत्सव खूब देखने को मिलता है। वहां पर श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी प्रसिद्ध यात्राएं एवं झांकियां निकाली जाती हैं। स्वादिष्ट भोजन एवं भोग का आयोजन कर भगवान श्री कृष्ण का पूजन एवं ध्यान किया जाता है। भजन कीर्तन एवं म्यूजिकल प्रोग्राम आयोजित किए जाते हैं। बड़ी तादाद में लोग इकट्ठा होकर इस उत्सव को मनाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का यह पावन एवं खूबसूरत त्योहार विदेशों में किसी सुंदर से दृश्य की तरह प्रतीत होता है और और वह भक्तों को मानो किसी अन्य ही दुनिया में ले जाती है।
FAQs
रोहिणी नक्षत्र 5 तारों का एक समूह है। चंद्रमा इस नक्षत्र का स्वामी है और शुक्र नक्षत्र की राशि का स्वामी है।
श्री कृष्ण नारायण के आठवें अवतार हैं।
श्रीकृष्ण जी का जन्म मथुरा में हुआ था।
हां, आप माखन मिश्री का भी भोग लगा सकते हैं।
Puja hails from the land of forests “Jharkhand”. She is an IT Engineer and worked as an analyst with Tech Mahindra. Her forthright nature and wider perception sparked the writer within. Singing and playing badminton is what she loves.