कजरी तीज/कजली तीज: महत्व,इतिहास,विधि | Kajri Teej/Kajli Teej

कजरी तीज कब है 2024, व्रत कथा कहानी, महत्व, पूजा विधि मुहूर्त, मनाने का तरीका (Kajri/Kajli Teej in Hindi, Vrat Katha, Date, Puja Vidhi)

भारत में त्योहारों का बहुत महत्व है। तीज-त्योहार भारतीय संस्कृति में चार चांद लगाते हैं। आज हम इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण त्योहार की बात करेंगे, जिसे मूलतः कजरी तीज/कजली तीज के नाम से जाना जाता है। यह सुहागनों का खास त्योहार है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए निर्जल व्रत रख कर इस त्योहार को मनाती हैं। भारत भर में तीज व्रत का एक विशेष महत्त्व रहता है।

तो आइए, इस लेख के माध्यम से जानें कजरी तीज से जुड़ी मुख्य जानकारियों के बारे में और साथ में हम इसकी पौराणिक महत्ता पर भी प्रकाश डालेंगे।

कजरी तीज कब मनाई जाएगी? 

इस वर्ष कजरी तीज 22 अगस्त को मनाई जाएगी। हर साल इस त्योहार को भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीय तिथि को मनाया जाता है। कहते हैं इस दिन सौभाग्य की प्राप्ति का संकल्प ले कर महिलाएं व्रत रखती हैं।

हिंदू पंचाग के हिसाब से तृतीया तिथि अगस्त 21, 2024 को 17:09:19 से तृतीया आरम्भ हो रही है। वहीं तृतीया तिथि की समाप्ति अगस्त 22, 2024 को 13:48:37 तक है।

क्यूं मनाई जाती है? 

तीज का पौराणिक महत्व है। प्रचंड गर्मी के बाद आई बारिश की फुहार का स्वागत लोग तीज जैसे त्योहार से करते हैं। इस दौरान देवी पार्वती की उपासना का बड़ा महत्व है। देवी पार्वती और शिव जी की प्रेम कथा से प्रभावित हो कर, महिलाएं इस दिन अपने सफल दाम्पत्य की कामना करती हैं।

दिनांक 21-22 अगस्त, 2024
समय अगस्त 21, 2024 को 17:09:19 से अगस्त 22, 2024 को 13:48:37 तक
कहां मनाया जाता है?राजस्थान, पंजाब, यूपी, बिहार आदि।
कौन मनाता  है?महिलाएं, कुंवारी कन्याएं।

इसका महत्व क्या है?

तीज का उत्सव आस्था और समर्पण का प्रतीक है। माना जाता है कि इस दिन देवी पार्वती की उपासना करने से पति की आयु लम्बी होती है तथा महिलाओं को सौभाग्य प्राप्त होता है। 

इतिहास

कजरी तीज का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। एक पौराणिक कथा के अनुसार कजली नामक वन में एक राजा अपनी रानी के साथ विहार करने को जाते थे। यह वन उनके प्रेम का प्रत्यक्षदर्शी बन चुका था। इसी वन के नाम पर कजरी गीत गाने का प्रचलन हो गया। कुछ समय बाद राजा का देहांत हुआ और विरह में रानी ने सती कर लिया था। उन दोनों के प्रेम को चिन्हित करते हुए लोग तब से कजरी गीत गाते हैं। मूलतः इन गीतों के माध्यम से दंपति को सम्मान दिया जाता है।

एक और कथा माता पार्वती और शिव जी के प्रेम को दर्शाती है। मां पार्वती ने 108 वर्षों की कड़ी तपस्या की थी, जिसके परिणामस्वरूप शिव जी ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। साथ ही ये भी आशीर्वाद दिया कि जो स्त्री इस दिन व्रत रखेगी वो सौभाग्यवती होगी। 

इन मान्यताओं के साथ कजरी तीज को मनाने का प्रचलन है।

पढ़ें: हरियाली तीज के बारे में।

कजरी तीज मनाने का तरीका

इस त्योहार के दिन सुहागन, गर्भवती महिलाएं, कुंवारी कन्याएं सभी पूजा अर्चना कर सकती हैं। तीज के दिन नीमड़ी माता की पूजा करने का भी प्रावधान है।

सुहागने सुख समृद्धि की कामना करते हुए निर्जला उपवास रखती हैं। वहीं गर्भवती स्त्रियां जल एवं फलाहार कर के पूजा कर सकती हैं। कुंवारी कन्याएं योग्य वर की प्राप्ति हेतु इस व्रत का पालन कर सकती हैं। 

पूजा विधि

पूजा की विधि इस प्रकार है:

  • इस पूजन को करने के लिए मिट्टी या गोबर से तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है। साथ ही थाली में नींबू, ककड़ी, सेब, सत्तू, अक्षत, मौली आदि को सजाया जाता है।
  • पूजा की शुरुआत नीमड़ी माता को जल एवं रोली अर्पित कर कर की जाती है।
  • नीमड़ी माता की पीछे की दीवार पर रोली, काजल एवं मेहंदी के तेरह बिंदी समान टीके लगाए जाते हैं।
  • नीमड़ी माता को मोली, मेंहदी, काजल, वस्त्र आदि अर्पित की जाती है।
  • कजरी तीज पर संध्या को पूजन के पश्चात चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। चंद्रमा को भी अक्षत, रोली और मोली अर्पित किया जाता है। 
  • कहते हैं पूजा में चांदी की अंगूठी और गेहूं हाथ में ले कर अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद उसी स्थान पर परिक्रमा करनी चाहिए। 

कथा

सौभाग्य प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले इस त्योहार में भगवान शिव एवं माता पार्वती की प्रेम कथा का वाचन होता है। 

इसके अलावा एक गरीब ब्राह्मण की कथा भी कही जाती है। ब्राह्मण की पत्नी ने तीज व्रत का संकल्प लिया था। इसके लिए उसने ब्राह्मण को सत्तू लाने को कहा। परेशान ब्राह्मण सत्तू की खोज में निकला। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि सत्तू खरीद सके। एक दुकान पर पहुंच कर उसने साहूकार को सोता पाया। वो दुकान से सत्तू उठा कर निकल ही रहा था कि साहूकार की नींद टूट गई। साहूकार ने उसे चोर समझा। बाद में तलाशी के बाद पता चला ब्राह्मण केवल सत्तू ले कर जा रहा था। इसके पीछे का कारण जान कर साहूकार की आंखें नम हो गई। उसने ब्राह्मण की पत्नी को बहन मानकर ब्राह्मण को सत्तू और धन के साथ विदा किया। कहते हैं इस दिन कथा सुनने और व्रत रखने से मनोकामना पूर्ण होती हैं।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कजरी तीज कैसे मनाते हैं?

तीज के कई प्रकार होते हैं। कजली तीज मूलतः राजस्थान के क्षेत्र में मनाई जाती है। सुहागिनें सजधज कर इस महोत्सव में हिस्सा लेती हैं। कहीं कहीं झूला झूलने की प्रथा भी है। पंजाब के क्षेत्रों में तीज पर मेला भी लगता है। 

FAQs

कजरी तीज पर कौन कौन से भजन गाए जाते हैं ?

कजरी तीज पर ‘जय अम्बे गौरी’, ‘कर्पूर गौरम’, ‘हे शंभू बाबा’ जैसे भजन गा सकते हैं।

क्या कजरी तीज पर मेंहदी लगाने का महत्व है?

जी। माता पार्वती को मेंहदी पसंद है, इसलिए महिलाएं मेंहदी लगाती हैं।

महिलाएँ कजरी तीज पर किन रंगों के कपड़े पहनती हैं?

महिलाएँ लाल या हरे रंग के कपड़े पहनती हैं।

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